Tuesday, February 26, 2013

मन

कोई चंचलता नहीं
शांत है सब
इतना शांत कि
कुछ बिलस्त मुस्काने उग आईं हैं देखो
मन के किनारे
एक बहती नदी सा हो चला है
कभी चंचल था
बच्चे सा कूदता
अल्हध जवान सा फिरता
पर बूढ़ा नहीं हुआ है

बस लौट आया है
वहीँ
जहाँ से उपजा था
फूटा था एक कोपल से
या शायद फूट रहा है
जैसे बसंत के शाम की
हवा हो कोई
धीमी ..मध्यम ..शांत

हाँ ...लौट आया है मन
जहाँ से उपजा था ...



Sunday, November 11, 2012

धुंध

कुछ ठहर सा गया है सब यहाँ
सूरज अलसाया सा किसी hangover में डूबा सा चला आता है
जैसे किसी ने alarm लगा कर ज़बरदस्ती जगाया हो
दिन भर लडखडाती चालें चलता इंतज़ार करता है
की कब पांच बजे और छुट्टी हो
नाईट ड्यूटी पर चाँद भी बेमन सा
पिछले साल की फटी पुरानी चांदनी ओढ़े
चला तो आता है
औपचारिकता निभाने
contract था
संदेसे एक दुसरे को पहुँचाने का
पर वो भी बहुत छुट्टियाँ लेने लगा है आजकल
काम जो नहीं है उसके पास अब कुछ
रोज़ कोई नया बहाना न आने का बना लेता है

बस एक धुंध रहती है अब यहाँ
नयी नयी नौकरी पर लगी है
काम अपना बखूबी करती है

Wednesday, October 31, 2012

ऐसा भी होता है..

अक्सर ऐसा भी होता है
जब वही सब कुछ होता है
रोज़ होता है
वही शक्लें होती हैं वही बातें 
वही हार जीत, वही सही गलत के लफड़े
वही वक़्त
वही सुबह, दोपहर, शाम
सूरज भी बड़ा punctual है
चाँद सितारे भी कम नहीं
अपने वक़्त पर हाजिरी लगाने सब चले आते हैं

तब मेरी एक दुनिया होती है
वो उलटी पुलटी दुनिया मेरी
वहां अक्सर रात को चाँद की गली में सूरज टहलते दिखता है
थक जाता है जब तो चाँद से बहती नदी में पैर डुबोये
तारों को घंटों तैरते देखता है
बादल कहीं दो पहाड़ों के बीच बैठा खिलखिलाता है जब
बारिश होने लगती है

पेड़ों पर शेर उंघते हैं
और पंछी पहरा देते हैं
रात की रानी सुबह खिलती है
रात को सूरजमुखी अंगड़ाई भरता है

मंदिर से आजान सुनायी पड़ता है
मस्जिद में घंटियाँ बजती हैं
मोहोम्मद रावन को मारता है
राम सूली पर लटका दिखता है

हाँ कई बार ऐसा भी होता है
वो उलटी पुलटी दुनिया मेरी ...

Thursday, October 18, 2012

पौना साल ...

बसंत के फूल चुने थे साथ 

सावन की झड़ी ने साथ भिगोया था

गर्मियों की लू के थपेड़ों से

एक दूसरे को अपने आँचल में छिपाया था

अब सर्दियों की रातों में

बस ख़्याल बचे हैं

तुम उन्हें सेकना वहां 

मैं इन्हें यहाँ सेकूंगी 


हाय कि 

प्यार का ये साल हमारा पूरा न हुआ ....

वो अलग थे

वो अलग थे 
सो जुदा हो गए
एक पल में
शाख से जुड़े जुड़े 
जाने कब सूखी थी वो

पर

एक यकीन की जड़ थी 
कि थाम लेगा शाख शायद 
गिरने नहीं देगा
पर शाख थी विशाल 
बहुत
कितना और क्या संभालती
वो सूख कर गिर गयी

वो अलग थे
सो जुदा हो गए 


Wednesday, October 17, 2012

वक़्त की शाख से कुछ लम्हे ...

हम दोनो
जो हर्फ थे
हम एक रोज़ मिले
एक लफ्ज़ बना

और हमने एक माने पाए

फिर जाने क्या हम पर गुज़री
और अब यूँ है
तुम एक हर्फ हो
एक खाने में
मैं एक हर्फ हूँ
एक खाने में
बीच में कितने लम्हो के खाने ख़ाली हैं
फिर से कोई लफ्ज़ बने
और हम दोनो एक माने पाएँ
ऐसा हो सकता है
लेकिन सोचना होगा इन्न ख़ाली खानों में हूमको भरना क्या है .....
 

एक और वापसी



एक अरसे बाद खुद से मिले .. ..देख कर मुस्कुरा दिया। पुछा, ' कहो, आ गए सैर करके?' बहुत वक़्त लगा दिया? कैसा रहा सफ़र?' उसे देखा,,,पथराई  सी आँखें हमारी आँखों में जैसे कुछ टटोल रही थीं ..उसकी खामोश नज़र पूछ रहीं थीं जैसे,,'क्या खोया? क्या पाया? फिर नज़रें मिला कर बोला 'छोडो जाने दो .. क्या करना हिसाब किताब ...ये बताओ खुश तो हो?' हमने भी धीरे से हामी भर दी ...फिर वो हाथ पकड़ कर बोला ..' मैं याद हूँ?' हम कुछ शर्मसार से हो गए ...याद तो था,,पर डर था कहीं पहचानने की बात पर ज्यादा सवाल जवाब किये तो बड़ा मुश्किल हो जायेगा ...जल्दी लौटेंगें कहकर इतने लम्बे अरसे तक गायब जो हो गए थे,,
और फिर उसने पढ़ लिया,,सारा मन आँखों से एक ही नज़र में उतार लिया,,बोला, ' आओ बस गल लग जाओ ..सब गिले शिकवे ख़तम,,'. अपने सीने से लगाया ....और हम दोनों रो पड़े .. ...